सूतक काल: जन्म मत्यु पर सूतक काल लागू होता है और परिवार को अशुद्ध माना जाता है, परिवार में सामाजिक दूरी व आत्म संयम को बनाए रखना चाहिए
सूतक क्या होता है? जन्म और मृत्यु में सूतक के नियम? सूतक कब लगता है? सूतक कितने दिन का होता है? सूतक में क्या करना चाहिए और क्या नहीं? सूतक से जुड़ी धार्मिक मान्यताएं?
हिंदू धर्म में सूतक धार्मिक और पारंपरिक अवधारणा है, शारीरिक और मानसिक पवित्रता बनाए रखने के लिए अपनाए जाते हैं। जो मृत्यु या जन्म के बाद विशेष नियमों और संयम को पालन करने से संबंधित है। परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर सूतक (अशौच) लगता हैं। किसी घर में शिशु का जन्म होता है तो भी सूतक माना जाता है। यह 10, 11 या 12 दिन तक भी हो सकती है, जो परिवार की परंपरा, गोत्र या संप्रदाय पर निर्भर करता है।
इन लोगों को सूतक काल मनाना चाहिए: मृत्यु या जन्म जिस परिवार में हुआ है, उस परिवार के सदस्य सूतक मानते हैं। पुत्र, पुत्रवधू, बहन, भाई, बहू, दामाद, पोता-पोती आदि।
सूतक काल में इन कार्यों को करना वर्जित है: पूजा-पाठ नहीं करना चाहिए। मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए। प्रसाद, भोजन दूसरों को नहीं देना चाहिए। सार्वजनिक या धार्मिक आयोजनों से दूरी रखनी चाहिए। बाल और नाखून नहीं काटते।
मृत्यु पर सूतक का समय: मान्यता है कि मृत्यु के बाद 10 दिन तक सूतक होता है। कुछ परंपराओं में 13 या 15 दिन तक भी माना जाता है। श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण इन दिनों के बाद किए जाते हैं।
इन पर सूतक नहीं लगता है : साधु संत और सन्यासी, 5 साल से छोटे बच्चों पर और विद्यार्थियों पर इसके साथ मृत्यु सूतक गर्भवती स्त्रियों पर लागू नहीं होता है। कर्मचारियों पर भी सूतक लागू नहीं होता है। मृत्यु के बाद बाहर से आए व्यक्तियों पर भी सामान्यतः लागू नहीं होता है।